प्रस्तुत तीर्थक्षेत्र श्री गुरुदेव दत्त का है, जो शिंगणापुर से ४१ कि.मी.पर है | प्रस्तुत नेवासा तहसील से १४ कि.मी. दूर ‘मुरमे’ नामक ग्राम के पडौस में ऊँचे स्थानपर विराजमान है | श्री क्षेत्र देवगड एक पवित्र एवं मनभावन तीर्थ क्षेत्र है | ईश्वर के इस भुनंदनवन पर विविध देव देवताओ का मंदिर है | प्रमुख मंदिर श्री दत्त प्रभु का है | प्रस्तुत मंदिर में प्रतिष्ठापित मूर्ति , गुम्बज कि जाली , प्रभु का आसन फर्श , शेष सभी संगमरवर कि सेवा सुसेवाडी स्टोन फालना जि. पाली ( राजस्थान ) के करागिरों को पूरा श्रेय तथा प्रेय है | हर पत्थर में वाणी फूँक – फूँक कर मंदिर कि सुंदर रचना कि है | महाराष्ट्र में पूरी तरह पत्थरोंसे निर्मित यह श्री दत्त मंदिर सचमुच निर्माण कला का श्रेष्ठ ढाँचा है | प्रस्तुत मंदिर पर चार फीट ऊँचा स्वर्ण कलश है | प्रस्तुत मंदिर के पास श्री शनिदेव भगवान व हनुमान के मंदिर है |
श्री शनिदेव के पास ही मच्छिंद्रनाथ और गोरखनाथ का भी मंदिर है | नारदमुनी भी पाकशाला के पास विराजमान है , श्री मार्कंडेयने सदगुरू किसनगिरी बाबा के सपने में आकर दृष्टांत दिया था , अत: मंदिर के उत्तर भाग में कोंकणी मार्कंडेय का मंदिर है | श्री दत्त मंदिर कि बायी ओर पंचमुखी श्री सिद्धेश्वर का मंदिर है, पास में ही माता ‘ पार्वतीदेवी ‘ कि प्रतिष्ठापना है | दाहिनी ओर श्री गजानन , तो बायी ओर कार्तिक स्वामी कि मूर्ति स्थापित है |
पवित्र श्री देवगड में प्राकृतिक अनुपम श्रृगांर हेतु महाराष्ट्र सरकार के वन विभाग ने ग्यारह हजार से अधिक सुंदर पेड, पौधे लगाकर सौंदर्य में श्री वृद्धि की है | रतनगड की ऊँचाई से ओर राहू के मुँह से बहती हुई पियुष धारा यानि यहाँ से बगल में बहनेवाली प्रवरा नदी | अगस्ती ॠषि के तप का तेज और मराठी संत ज्ञानेश्वर की भक्ति को अपनी बाहों में समेटकर प्रवरा नदी का प्रवाह ‘ स्कंध पुराण ‘ से लेकर बह रहा है | प्रवरा केवल नदी ना होकर साक्षात तेज गतिशीलता एवं संस्कृती का प्रतीक है | ज्ञान, ध्यान , कर्म , भक्ति के मूल मंत्र को अवगत करनेवाली यह जल धारा है | अत:प्रवरा जल को अमृत तुल्य माना गया है | श्री क्षेत्र देवगड जैसे मनभावन, सुहासवन , प्राकृतिक तपोभूमि की रचना करनेवाले ईश्वर स्वरूप महात्मा की भक्त जनों की जानकारी मिलने हेतु तथा दुःख के बवंडर में त्रस्त पीडितों को सुख एव आनंद का किनारा यहाँ मिलता है | प्रस्तुत तीर्थक्षेत्र के निर्माता और संकटमोचक , महान तपस्वी, आजन्म ब्रम्हचर्य का व्रत पालन करनेवाले श्री किसन गिरी बाबाजी की कीर्ति सौरभ समस्त महाराष्ट्र में बह रही है |