उत्सव
शनिसिंगपुर में, हर रोज, भगवान श्री शनि के लाखों श्रद्धालु ‘दर्शन’ के लिए आते हैं हर शनिवार को असंख्य भक्त आते हैं और ‘दर्शन’ से लाभ उठाते हैं।प्रत्येक शनि अमावस्या और हर वर्ष की गुढीपाडव पर, भगवान श्रीनी के लाखों भक्तों का लाभश्री शनिशर जयंती, भगवान शनि के जन्मदिन का विशेष दिन, महान उत्साह और भक्ति से मनाया जाता है।हर साल, ‘चैत्र शुध्द दशामी’ से ‘चैत्र वाद्य प्रतिपदा’ से, लगातार, भगवान का नाम और ‘ग्रंथराज ज्ञानेश्वरी पारायण’ का जप किया जा रहा है। इस अवधि के दौरान, हर रोज, प्रार्थना निम्न प्रकार से की जाती है
विशेष उत्सव
- प्रतिवर्ष चैत्र शुद्ध || १० ते चैत्र वैद्य || १ अखंड हरिनाम सप्ताह , ज्ञानेश्र्वरी पारायण सोहळा , हरी कीर्तन व समारंभ |
- प्रतिवर्ष आषाढी एकादशी को शिंगणापूर से पंढरपूर पैदल श्री शनिदेव की पालखी समारोह |
- प्रतिवर्ष संत एकनाथ षष्ठी को शिंगणापूर से पैठण ‘ दिंडी सोहळा ‘ |
शनी अमावस्या
शनिचर के दिन यह अमावस होती है | आम तौरपर साल भर में दो या तीन अमावस आती है | प्रस्तुत शनि अमावस को शिंगणापुर में यात्रा – मेला का आयोजन रहता है | शुक्रवार की रात बारह बजेसे शनिचर रात १२ बजे तक यहाँ पूजन-अर्चन, अभिषेक चलता रहता है | देवस्थान की ओर से महापूजा की जाती है | दर्शनार्थियों का स्त्रोत निरंतर चलता रहता है | करीब ८ से १० लाख लोग २४ घण्टे में आते रहते है | भीड़ के कारण सभी भक्तो को चबूतरे पर दर्शन के बजाय नीचे से ही दर्शन की अपेक्षा होती है |
शनि अमावस्या का महत्व इसीलिए है सूर्य की सहस्त्र किरणों में जो प्रमुख है, उसका नाम ‘अमा’ है | ‘अमा’ नाम की प्रधान किरण के ही तेजसे सूर्यदेव तीनों लोगों को प्रकाशित करते है | प्रस्तुत ‘अमा’ में तिथि विशेष को चंद्रदेव निवास करते है , अत: इसका नाम शनि अमावस्या है | फलस्वरूप अमावस्या प्रत्येक धर्म कार्य के लिए अक्षय फल देने वाली बताई गई है | श्राध्द कर्म में तो इसका विशेष महत्व है |
शनिजयंती
यह श्री शनिदेव भगवान का जन्मदिन समझा जाता है , अत: बहुत ही हर्ष और उल्हास से यहाँ मनाया जाता है | वैशाख वय चतुर्दशी-अमावस के दिन आम तौरपर यह आता है | इस दिन मूर्ति निल वर्ण की दिखती है | ५ दिनतक यज्ञ और सात दिन तक भजन – प्रवचन कीर्तन का सप्ताह मई में कडी धूप में मनाया जाता है | इस दिन स्थानीय पंडितजी को बुलाकर ग्यारह
ब्राम्हण पंडितजी से लघुरुद्राभिषेक सम्पन्न होता है | यह कुल १२ घंटे तक चलता है; अन्त में महापूजा से उत्सव का समापन होता है |
प्रारंभ में इसी दिन मूर्ति को पंचामृतं , तेल तथा मूर्ति को पडौस की कुआँ के पानी से और गंगाजल से नहाया जाता है | प्रस्तुत कुएँ का पानी केवल मूर्ति सेवा के लिए ही किया जाता है | देवस्थान के अन्य प्रयोजन के लिए नहीं | स्थान के बाद मुर्तिपर नौरत्न हर जो सोना हीरे से रत्नजड़ित है , चढ़ाया जाता है |
गुढी पाडवा
चैत्र शु || प्रतिपदा यानि ‘ भारतीय नवववर्षारंभ दिन ‘ साढ़ेतीन मुहूर्तो में से एक सुमुहूर्त का दिन | अत:भक्त अपने संकट निवारण के लिए वर्ष के प्रांरभ में ही दर्शन का लाभ उठातें है | यहाँ यह दिन यात्रा का स्वरूप धारण करता है | अत: पास में जगह-जगह दुकानें सज-धज कर विक्री के लिए होती है | ग्राम के अनेक श्रद्धालु शनिदेवता को इस दिन गंगोदक ( प्रवरा नदी तथा गोदावरी संगम ) कावड़ बास की बहँगी से एक या अनेक की टोलियाँ बनकर लाती है | जो लोग कावड़ से गंगाजल लाते है , वे वास्तव में मनौतियाँ माननेवाले होते है | शिंगणापुर के हरेक घर का कमसे कम एक सदस्यस उत्सव में सम्मिलित होता है | शिंगणापुर से संगम स्थल ( कायगांव टोका ) लगभग ४२ कि. मी. की दुरी पर है | प्रस्तुत गंगोदक – गंगाजल नंगे पैर पैदल चलकर लाया जाता है |
गंगोदक कॉवर लाकर भक्तगण ग्राम के बाहर ही रुकते है, फिर सुबह सब इकठ्ठा होने के बाद ‘बाहर ‘ से मूर्ति तक ध्वज , नामघोष के साथ कावड़ वालोँ का स्वागत किया जाता है | जुलुस के रूप में फिर सारे कावड़धारी मूर्ति के पास आते है, फिर गंगोदक से श्री शनि भगवान का स्नान सम्पन्न होता है | स समय किसी भी भक्त को चबूतरे पर प्रवेश नहीं होता है | मनौतियाँ मनानयहाँ बाद में भक्तगणों को भंडारा – अन्नदान प्रसाद के रूप में करते है |