शिंगणापुर इलाके में सर्वत्र खेती होने के कारण साँप का रेंगना, मिलना स्वाभाविक है | लेकिन यदि किसी को साँप ने डस लिया तो उसे शनिदेव के पास लाया जाता है | शर्त यही होती है की मंदिर के पास उसके शारीर पर सफ़ेद कपडे हो | यहाँ ऐसी मान्यता है की सर्पदंश व्यक्ति को यहाँ लानेपर जहर उतरकर वह अच्छा बन जाता है | उसे केवल यहाँ शानितिर्थ दिया जाता है; अन्य कोई भोज नहीं, केवल जिस व्यक्ति को साँप दंश हुआ है, उसके निकटस्थ रिश्तेदार ने नहाकर गिले वस्त्र में शनिदेव को पानी समर्पित करना है |
मैंने जब यह किस्सा सुना तब शिंगणापुर के कुछ लोगो से मिला, साक्षात्कार लिया तब उन्होंने भेट में जो कुछ कहा वह अंश: दी. १२ मई २००१ को स्थानीय श्री चंद्रभान दामोदर शेते को सर्पदंश हुआ; वे जब खेती में पानी भरने के लिए गए तब उनको सर्प ने दंश किया, उनको फ़ौरन उठाकर चबूतरे के पास लाया गया | उपर्युक्त साडी विधियाँ सम्पन्न की; उनकी धर्मपत्नी ने मनौती की भगवान से, और जब तक वह हिलने नहीं लगे तब तक वह निचे शनिदेव को प्रदक्षिणा करती रही; वह सब सुधपर आये तो ही उसने प्रदक्षिणा बंद की अंत में वह अछे होकर घर चले गए |
श्री दगडू सबले की माँ को रजनी बेला में सर्पदंश हुआ; सर्पदंश कैसे हुआ यह कहते कहते ही वह लोगो के सामने गिर पड़ी | उसे उठाया; श्री शनि भगवान के पास लाया; तिर्थोदंक दिया, शनिदेव के नमो का उच्चार किया , क्या चमत्कार वह २-४ घंटे में ही होश में आ गयी|
स्थानीय सीताबाई काशीनाथ दरंदले के बारे में अवगत किया, की उसे भी सर्पदंश हुआ; रातभर नीम के पत्तो पर रही, आश्चर्य की वो सुबह ठीक होकर चली गयी | यहाँ यह भी मान्यता है की काम करते करते पुरुषो को तो क्या गाय-बैल जैसे जानवरों को भी सर्पदंश हुआ तो उन्हें भी उठाकर यहाँ लाते है, वाही विधियाँ करते है , बाद में यह जानवर हिलते डुलते आहिस्ता आहिस्ता चलने लगते है |
श्री अनिल दरंदले ने बताया की, श्री प्रमोद दरंदले मंदिर के पास मुझे मिलने आया, और अचानक उसने बातो ही बातों में मोटर साइकिल को ताला लगाते निचे देखा तो उसे अचानक एक साँप दिखाई दिया | उसे देखते हे वो होश में आकर समझ गया की मैंने गलती से यहाँ गाड़ी को ताला लगाया है, उसने ताला खोलते ही साँप गायब | यह रही सर्पक्रीडा !
इसी प्रकार का एक प्रसंग पडौस के गाव सोनई का है | वहा के किसान श्री नामदेव दरंदले की बहु को रस्ते में सर्पदंश हुआ; घर आकर हकीकत कहते कहते वह बेहोश हो गयी, लोगो ने उसे उठाकर श्री शनिदेव के पास लाया, श्री शनिदेव का तिर्थोदंक प्रशन किया, रातभर नामघोष जरी रहा, करिश्मा यह रहा की, प्रातः कल में वह होश में आई और इकठ्ठा लोगो से गपशप करने लगी |
प्रस्तुत देवालय के प्रांगन में सभी व्यवस्था बढ़िया तथा उत्तम हैं| यहाँ पूजा की व्यवस्था उत्तम है, तथा पानी की व्यवस्था भी है | साथ ही पुजारियों तथा पंडितो का व्यव्हार भी मानवीय है | और सब से महत्वपूर्ण बात ही, की यहाँ के ट्रस्टी तथा सभी सेवक कर्मचारियों का भक्तजनों से उत्तम व्यव्हार है | सराहनीय रिश्ता भक्तों के साथ वे रखते है | शनैश्वर का दर्शन करके जीवन का एक अद्भूत पुण्य यहाँ प्राप्त होता है |
श्री क्षेत्र शनि शिंगणापुर के मंदिर में एक नयी अनुभूति प्राप्त होती है | पृथ्वी पर आज भी ऐसी जगा विद्यमान है जो प्रेरक तथा दर्शनीय है | यहाँ आने से लगता है की आदमी एक दुसरे की धन संपदा को कुदृष्टी से नहीं देखता | अन्यत्र ऐसा परिवेश नहीं’ अतः यह अदभुद स्थान है | जहाँ देवता तो है लेकिन मंदिर नहीं है | यहँ स्थान सभी सभी धर्मो तथा जातियों के लिया खुला है | तथा यहाँ के सभी पदाधिकारी बहुत ही सरल एवं सेवाभावी है |
में स्वयं १८ फरवरी २००४ को प्रस्तुत देवस्थान के जो ट्रस्टी है, उन्हें भेट के रूप में मिला | उनसे प्रस्तुत देवस्थान की जानकारी हेतु मिला, तो पहली ही भेट में गदगद हो गया; उन्हें मिलकर मुझे इसलिए प्रसन्नता हुई, की उन्होंने, स्वयं हमारे पहले संस्थापक अध्यक्ष स्व. बानकर भाऊ के साथ देवस्थान का, ग्रामपंचायत का काम किया है,
इन्होने मुझसे एक बार कहा था की राजस्थान के भीलवाडा में ‘मकराना’ नाम का एक गाव है; वहाँ भाऊ बानकर के साथ हमें मंदिर के लिए मुर्तिया लेने के लिए दिसम्बर १९९० में जाना था | तब ४ लाख रूपये की नगद कैश थी, चंबल घाट से पहले हम एक ढाबे पे रुके वहा जलपान किया | और पूछ ताछ के रूप में जब धबो के नौकरों को हमने बताया की हमारे पास कैश है, और हमें मूर्ति लेने के लिए सुबह वहा पहुचना है , तो सुनते ही उन लोगो ने हमसे पहले ही ना- नुकर किया, अधि रात में ऊपर जाने के लिए उन्होंने मना किया, क्योंकि बोले, यहाँ दिन में भी घाट में अकेले गाड़ी नहीं निकलती और अब तो अधि रात है| श्री भाऊ बानकर ने सोचा की अब यहाँ रुके(ढाबे में) तो भी यह लुटनेवाले है और घाट में सफ़र किया तो वहाँ भी लुटने वाले है | तो चले यह पैसे भगवान के है और वोही इसकी रक्षा करेंगे, नहीं तो लुटने देंगे, चलो निकले !
वे सरे जीप से तो अकेले गाड़ी के रूप मेंज निकले, अन्य गाड़ीयो का कोई जत्था नहीं था | सबके मन में दर था, लेकिन ताज्जुब की बात यह है की, जैसे ही घाट से गाड़ी प्रारंभ हुई तब से लेकर सुबह तक घटी में नकी गाड़ी के साथ साथ काले घोड़ेपर स्वर एक घुड़सवार दौड़ रहा; इन्हें लगा वह भी हमारे जैसा ही होगा लेकिन जैसे ही सुबह हुई, घाट समाप्त हुआ, वहाँ से घोडा और घुड़सवार दोनों भी अचानक गायब हुए | तब उन्हें महसूस हुआ की हो न हो वे श्री शनिबाबा ही थे |
अस्सी वर्ष उम्र के श्री अप्पासाहेब यशवंत दरंदले से जब शनिदेव के अदभुद अनुभव के सन्दर्भ में उनसे मिला; तब उन्होंने खुले दिल से कथन किया की, हमारे ग्राम में कुछ लोग रहते है शेष भाग बाग़ बगीचा बस्ती में रहते है, हमारे स्थानीय श्री किसन शेटे के घर में चोरी हुई थी, चोर घर में गए, चोरी की, जब माल लेकर दरवाजा से बहार निकले तो; वे अंधे हो गए उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता था, सुबह वे पकडे गए | इस तरह श्री शनिदेव हमसब की निश्चित रक्षा करते है |
शिंगणापुर के एक भक्त ने मुझे दी.१५ फ़रवरी २००४ को दोपहर मिलने पर श्री शनिदेव का किस्सा बताया | हुआ यो की मइ १९७२ की बात है, श्री साबले के पडौसी के घर में चोर आए | घर में कुछ एक मटके थे, मटके में पैसे एवं गहने रखे हुए थे | चोरोने मटके उतारे माल ढुंढने की कोशिश की, सारे मटके ढूंढे लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा | हालाँकि जेवर अदि वहीँ थे; लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला; वे ढुंढते रहे उतने में सुबह हुई; और वे पकडे गए | यह उन्होंने सारा आँखों देखा हाल बताया ||