शनि शिंगणापुर की चतु:सूत्री

श्री शनि शिंगणापुर में करिश्मा :-चतु:सूत्री |
“देवता है, लेकिन मंदिर नहीं |
घर है, लेकिन दरवाजा नहीं |
वृक्ष है, पर छाया नहीं |
भय है पर शत्रु नहीं ||”

देवता है लेकिन मंदिर नहीं!

श्री क्षेत्र शिंगणापुर के श्री शनिदेव इतने महान है की वे किसी छत्रछाया में शायद पलना नाकिन चाहतें; इसीलिए उन पर बंधा हुआ कोई मंदिर नहीं है | अर्थात सृष्टि की सुरक्षा हेतु रक्षाशों के विनाश के लिए परमात्मा ने अनेक रूप धारण किये है; वह भी केवल भक्तो की रक्षा हेतु | शिंगणापुर में श्री शनिदेव का यही वास्तव रूप है | श्री शनि भगवान यहाँ अष्टोप्रहार खड़े है, फिर चाहे धुप हो या बरसात, ठण्ड हो या आंधी तूफ़ान |बिना छत्र के वे रात दिन खड़े होकर शिंगणापुर के या यहाँ आनेवालों की वे रक्षां करते है; अतः भक्त निश्चिंत होकर रात को सोते है |वैसे यहाँ तो इससे पहले अनेक बुजुर्गो ने तथा युवा भक्तो ने ऊपर छत्र लगाने का प्रयास किया; लेकिन वे सफल नहीं हुए | किसी ने भी ऐसा प्रयत्न किया तो उन्हें कुछ न कुछ नुकसान उठाना पड़ता था | इसीलिए शनिदेव अपने भक्तो को कभीभी दर्शन देते है | वहा मंदिर नहीं; अतः किवाड़ नहीं; और किवाड़ नहीं अतः २४ घंटे खुला रहता है | मेरे विचार से हिंदुस्तान का यह एकमात्र दर्शन स्थल है; जहा देवता है पर मंदिर नहीं है! शिंगणापुर के नेक लोगो से जब में रु- ब- रु हुआ, तो उन्होंने साक्षात्कार में कहा की- शनिदेव हमारे सपनो में आकर कहते रहे की मुझे किसी छत्रछाया की कोई जरुरत नहीं है | यहाँ के परिवेश को देखकर लगता है की यह एक जागृत देवस्थान है | लेकिन देवस्थान की रमणीयता, खूबसूरती बढ़ानेवाला कोई मंदिर यहाँ नहीं है |

घर है लेकिन दरवाज नहीं |

घर हमारे सुख समृद्धि के लिए आवश्यक होता है | ऐसे घर को हम दरवाजा लगाकर आराम से सोते है या निजी काम के लिए हम दरवाजा लगा लेते है ;लेकिन शिंगणापुर में मकान है; लेकिन दरवाजा नहीं है |हिंदुस्तान के तो क्या दुनिया के किसी भी देश में आपको शनि शिंगणापुर जैसा गाव नहीं मिलेगा, जहा किसी भी घर को किवाड़ नहीं है | अब जहा किवाड़ या दरवाजा ही नहीं है तो कुण्डी लगाकर ताला लगाना यह तो दूर की कौड़ी है | यहाँ के लोगो के घर का सामान चाहे अन्दर हो या खेती का, सारा ही खुला रहता है | इन लोगो के घर में न अलमारी है, न सूटकेस, न कोई बक्सा | इता तो क्या; जैसे इनके घर को दरवाजा नहीं है, वैसे इनके मन को भी कोई दरवाजा नहीं, बंद द्वार नहीं है; इनके मन का दरवाजा भी सारा समय अथिथियो के लिए खुला रहता है | आधुनिक काल में आदमी दिन ब दिन सुकड रहा है ; वह सब-सब बंद कर रहा है; दरवाजे पे और दरवाज और न दरवाजे पे कंपाउंड में दरवजा लगता है; फिर भी उसे चैन नहीं, लेकिन शनि शिंगणापुर विश्व का एक मात्र ग्राम है, जहा सब की समस्याओ को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघटन- यूनो से भी बढकर आदर्श ग्राम है | अर्थात शनिदेव की कृपा के कारन ही यहाँ कोई दरवाजा नहीं लगते है; यदि कोई इस कृपा का पालन नहीं करता है या आज्ञा से हटकर जीना चाहता है, तो उसे उसका परिणाम भुगतने पड़ते है | शिंगणापुर ग्राम तथा उसके आसपास के सोलह चौरस की.मी. परिसर की १६० हेक्टर जमीं पर किसी के घर को न दरवजा हेई न खिडकिया है| केवल कुत्तो तथा बिल्लियों से रक्षा हेतु बास से ढका जाता है या पर्दा टंगा जाता है | गाव चोथा है लेकिन बागवानी के कारन समृद्ध है | अतः विपुल लोगो के घर अत्याधुनिक यानि पठार, ईट, सीमेंट के पाके मकान है ; फिर भी दरवाजा नदारद है और विशेष बात यह है की यहाँ के मकान दुमंजिला नहीं है, न फ्लैट प्रणाली के घर यहाँ है | आदर्श मकान की सारी विशेषताए प्रस्तुत गाव में है, अर्थात यह सभी शनिदेव की कृपा है,

वृक्ष है पर छाया नहीं

यह सच है की शनिदेव के चबूतरे के उत्तर दिशा में नीम का पुराना पेड़ था; (जिसे आज से १०-१२ वर्ष पहले तोडा गया है) कई शनि भक्त तथा यहाँ के बुजुर्ग आखों देखा हाल कहते है की जब नीम की डाली बढकर मूर्ति के ऊपर आ जाती, तो सब सम्बद्ध डाली जल कर खाक हो जाती थी | या कभी कभी जलने के बजय टूट कर गिर जाती थी | लेकिन यह विशेषता रही है, की डाली के जलने या टूटने से कभी कई हताहत नहीं हुआ; या किसी का कोई नुकसान नहीं हुआ | लेकिन पेड़ की छाया कभी भी मूर्ति पर नहीं पड़ती थी | अतः सृष्टि में यह अजूबा रहा, ताज्जुब रहा की पड़ोस में पेड़ है लेकिन उसकी छाया नहीं है | लगभग बीस पच्चीस वर्ष पहले यहाँ एक चमत्कार हुआ; इसी नीम के पेड़ पर बिजली गिरी, जब की बगल में एक शादी की बरात थी; लेकिन फिर भी कोई घायल नहीं हुआ, न किसी को कोई पीड़ा | बिजली पात प्रसंद में पेड़ तले आग लग गयी, वह वृक्ष करीब बाराह घंटे तक जलता रहा | प्रस्तुत आग बुझाने की अनेको ने प्रयत्न किये ; तब कही यह आग बुझी, पर आश्चर्य ली बात यह है, की दुसरे दिन पेड़ हरा भरा दिखाई दिया| यथार्त में पेड़ पर बिजली गिरने से वो शुष्क होकर या जल कर कला कलूटा बनकर धरती पर गिर जाता; लेकिन जो संपन्न हुआ वह वास्तव में एक दैवी चमत्कार था | इसीलिए यहाँ के लोग शनिदेव को एक जागृत देवता तथा प्रत्यक्ष भेंट समान भगवान मानते है | प्रस्तुत दैवी करिश्मा को लेकर ही लोग यहाँ खुले में कहते है की-” वृक्ष है पर कोई छाया नहीं” |

भय है पर शत्रु नहीं:

प्रस्तुत चतुरत क्श्रुती में शनिदेव को एक अति विशिष्ट दृष्टी से निरुपित लिया गया है; अर्थात बिना अनुभवों के अधर पर यह कहना गलत तथा झूठा प्रचार किया जाता है शनि हमारा शत्रु है; लेकिन मै दावे के साथ कहता हूँ की शनि हमारा शत्रु नहीं अपितु मित्र है |सामुद्रिक शास्त्र के अधर पर शनि के सन्दर्भ में यह गलत कथन किया गया है की क्लेश, दुःख, पीड़ा व्यसन, धुत, पराभव अदि शनि की साडेसाती के कारन सम्पन्न होता है; अर्थात यह एक पक्ष हो सकता है लेकिन जो जैसा करेगा वैसे फल पायेगा | सृष्टि के नियमो के अनुसार यदि हमने कुछ स्वार्थवश गलत किया तो वह उसका फल फ़ौरन देता है | ख़ामोशी. एकांतवास, उदास, निराशा से घिरे रहना, हरदम बुरे विचार आना, किसी से बात करने में जी नहीं चाहता ये सब हमारी मानसिकता की बातें है; उसमे शनिदेव का क्या दोष है; हकीकत में वे तो हमारे शत्रु नहीं अपितु मित्र है | जन साधारण में प्रचिलित ऐसा विश्वास है की यह एक दृष्ट गृह है, वे तोड़ते है; लेकिन पं. श्याम सुंदर लाल वत्स ने विशेष अनुसन्धान कर यह सिद्ध किया की “शनि मोक्ष प्रदाता ग्रह है और शनि ही शुभ ग्रहों से कहीं अधिक अच्छा फल देता है”| यह सच्चाई है की शनिदेव के प्रति हमारे मन में दर है; लेकिन कब; यदि हम कोई दुर्व्यवहार करें तो!अन्यथा वह हमारा मित्र है, जो हितोपदेश से हमें संवारता है | चोरी डकैती, व्यभिचार, परस्त्रीगमन,दुर्व्यसन तथा झूट से जिवंव्यापन नहीं करना चाहिए | यदि कोई जातक झूटे रास्तेपर चला गया तो शनि तकलीफ देता है | अन्यथा परम संतुष्ट होकर उसे पहले से अधिक संपत्ति, यश, कीर्ति, वैभव प्रदान कर सुखमय बना देता है | अतः वह हमारा मित्र है शत्रु नहीं | हमारे व्यव्हार में शनि का क्या दोष, हमारे जन्म-जन्मान्तर, युग-युगांतर, कल्प-कल्पान्तर के पापो को भुग्वा कर हमें परायण करना चाहिए | यदि पीड़ा-वेदना को मन्त्र जाप का सहारा लेकर सत्यतापूर्वक निर्वाह कर लिया जाए तो हलोक-परलोक सार्थक हो जायेंगे | अखिल मानव जीवन ही सफल हो जाएगा | केवल भय के कारण ही लोग शनिदेव की मूर्ति के निकले फोटो या नया वास्तु अपने घर में नहीं रखते | और कुछ भी अपनी करनी से बुरा हो तो उसका श्री शनिदेव को देने की एक आदत सी बन गयी है; लेकिन हकीकत में अपने बुरे कर्मो के कारण हमारे दिल में उसके प्रति भय है; लेकिन वे हमारे शत्रु नहीं है | भय शत्रु के प्रति होता है शत्रु कभी हमारा कल्याण नहीं करता है, शनि भक्तो का कल्याण करता है | अतः यह अजूबा है की हमें भय है; अगर बुरे कर्म करे तो; पर वे शत्रु नहीं है | आगे विभिन्न भक्तो के अनुभव के अधर पर अवगत किया गया है की शनि हमारा शत्रु नहीं; अपितु मित्र है!

जगह

श्री शनैश्वर देवस्थान, शनी शिंगणापूर,
पोस्ट : सोनई, तालुका : नेवासा, जिल्हा : अहमदनगर
पिनकोड : ४१४ १०५. महाराष्ट्र , भारत.

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