महाराष्ट्र में अहमदनगर जनपद कई बार अकालग्रस्त रहता है | कम वर्षा के कारण सूखे की चपेट में बार-बार अकाल पड़ता है | यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती करना है अकाल के कारण खेती तथा प्राणियों के लिए पिने का पानी दुर्लभ हो जाता है | अत: वे दर दर भटकते है, तब शिंगनापुर के किसान अपने आराध्य दैवत शनिदेव को पार्थना करते है | कौल लगाते है, तब कही शनिदेव की कृपासे वर्षा होती है ऐसी मान्यता प्रस्तुत इलाके मै है | लोग पुनवईसु नक्षत्र तक बारिश की प्रतीक्षा करते है, अगर बारिश नहीं हुई तो लोक इकठ्ठा होते है और शनिदेव से निर्णय मांगते है, वर्षा होगी या नहीं? प्रस्तुत प्रणाली को ही ‘ शिते-कौल लगाना ‘ नामाभिमान है | लोग कहते है की शायद मौसम विभाग का अन्दाज गलत हो सकता है लेकिन शनि भगवन का कौल सही ठहरता है |
प्रस्तुत कार्य के लिए शनिचर का चयन किया जाता है | पूरा प्रांगन साफ सुथरा रखा जाता है | शनि भगवान को गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है | शिंगणापुर के रहने वाले मामा – भांजा निराहार रहते है | निर्णय पूछनेवाला भी निराहार रहता है | प्रस्तुत विधि को देखने के लिए दूर दूर से सहस्त्र लोग यहाँ आकर आंगन में खड़े रहते है | इस समूह में किसी के पास भी नकली टोपी हो, न काला कमर पट्टा , न छाता | अगर किसी ने साथ में लाया हो तो सुए दूर रखा जाता है | बाद में सबपर गोमूत्र छिड़का जाता है |
कौल मांगने की प्रत्यक्ष विधि दोपहर तिन बजे से प्रांरभ होती है | सगे मामा – भांजा शुचिर्भुत होकर चबूतरे पर चढ जाते है | केवल तीन ही व्यक्ति चबूतरे रहते है, तीसरा गंगाजल लानेवाला – कांवडवाला, जिसे कोई स्पर्श नहीं करता है | मामा और भांजे को गीले वस्त्रों में एक दूसरे की और मुँह करके पूरब-पश्चिम दिशा में खड़ा किया जाता है | सी वक्त श्री शनिदेव का नामघोष चलता रहता है | तीन फीट छड़ियों को रातभर पानी में भिगोकर रखा जाता है, वह पानी केवल भगवन के लिए ही प्रयोजन लाया जाता है | मामाभांजा इन छड़ियों को कमर के दोनों ओर हाथों से पकडते है | पहले वे भगवान को प्रणाम करते है, फिर कुछ समय तक गुग्गल का धुआँ दिया जाता है| पूछनेवाला उन्हें नक्षत्र का नाम पुछता है, नक्षत्र का नाम लेने पर यदि बारिश होनेवाली है तो छड़ियों एक दूसरे से नजदीक अपने आप जाती है | यदि वर्षा विपुल होनेवाली है तो छड़ियों एक दूसरे से पूरी तरह सिमट जाती है | फिर भक्त गण जोर शोर से शनिदेव का उच्चार कर प्रणाम करते है |
प्रस्तुत कार्य विधि में केवल तीन नक्षत्रो पुनर्वसु , उत्तरा, हस्त का उल्लेख किया जाता है | जिस नक्षत्र का निर्णय मिलता है छर नक्षत्र के उल्लेख पर छड़ियाँ एक दूसरे से दूर हो जाती है, बाहर फैल तथा झुक जाती है | इतिहास गवाह है की सन १९५२, १९६२, १९७२, १९७८, १९८४ में इसी प्रकार का कौल मांगा गया था और सम्बद्ध काल में सच निकला | सन १९५२ में छड़ियों को अनेक बार लगाने पर भी छड़ियाँ हर बार बाहर निकल जाती थी बर्हि:मुख हुआ करती थी , उस वक्त कही भी वर्षा नहीं हुई जबकि अन्य वर्षो में बारिश अच्छी रही |
यह हकीकत है की ८ सितंबर १९८४ के दिन कौल मांगा था ; उस वक्त पुनर्वसु उत्तरा तथा हस्त नक्षत्र में भरपूर बारिश हुई, प्रस्तुत दिन ही पुरे नेवासा तहसील में वर्षा हुई | अजी ! महाराष्ट्र तथा देश के अन्य भागों में भी अच्छी वर्षा हुई | आज भी हमें ऐसे अनेक चमत्कार सुनने तथा देखने में मिलते है | क्या यह दुनिया का एक अलौकिक विलक्षण अजीब आश्र्चर्य नहीं लगता !!